उधर माता ने आकर पड़गाहन करके विधिवत् आहार दिया। बालक आहार देख-देखकर बहुत प्रसन्न हो रहा था। मुनिराज अक्षीण ऋद्धिधारी थे। उस दिन खीर का भोजन समाप्त ही नहीं हुआ। तब मिष्टदाना ने सपरिवार सेठ जी को, अनंतर सारे गाँव को जिमा दिया, फिर भी खीर ज्यों की त्यों रही। अगले दिन बालक वन में गाय चराने गया था। वहाँ उसने मुनि का उपदेश सुना। रात्रि में व्याघ्र ने उसे खा लिया। आहार देखने के प्रभाव से वह अकृतपुण्य मरकर स्वर्ग में देव हो गया।
पुन: उज्जयिनी नगरी के सेठ धनपाल की पत्नी प्रभावती के धन्य कुमार नाम का पुण्यशाली पुत्र हो गया। जन्म के बाद नाल गाड़ने को जमीन खोदते ही धन का घड़ा निकला। धन्यकुमार जहाँ-जहाँ हाथ लगाता, वहाँ धन ही धन हो जाता था। आगे चलकर यह धन्यकुमार नवनिधि का स्वामी हो गया और असीम धन वैभव को भोगकर पुन: दीक्षा लेकर अंत में सर्वार्थसिद्धि में अहमिंद्र पद पाया। यह है आहार दान का प्रभाव! जिससे महापापी अकृतपुण्य धन्य- कुमार हो गया।